आज बाज़ार कुछ ख़रीदने गया तो दुकानदार ने मेरी चमकती हुई गाड़ी को देखकर मज़ाक़ में कहा, "क्या दोबारा फिर वही गाड़ी ले ली?" (आमतौर पर मेरी दो साल पुरानी गाड़ी हमेशा इतनी साफ़-सुथरी रहती है कि लोगों को लगता है बस अभी शोरूम से ही निकलकर आ रही है.) मैंने दया के अंदाज़ में उत्तर दिया, "माँ के संस्कार." हमारे घर में चीज़ों की सफ़ाई और रखरखाव पर बहुत ध्यान दिया जाता है. इससे पुरानी से पुरानी चीज़ें भी चमकती रहती हैं.
इसके अलावा योग और ध्यान ने मुझे संवेदनशील बनाया है. जिससे हर वह व्यक्ति और वस्तु जिसने मेरी ज़िंदगी को सुविधाजनक बनाया है उसके प्रति एक आदर और धन्यवाद का भाव आया है.
बिना इस संवेदनशीलता के हम स्वार्थी बन जाते हैं. फिर दूसरों का शोषण करते हैं. यूज़ एंड थ्रो, उपयोग करो और फेंक दो. लेकिन जैसा व्यवहार दूसरों के साथ हम करते हैं वही लौटकर वापस आता है.
इसलिए संवेदनशील बनिए. इससे दूसरों को लाभ हो न हो, आपको ज़रूर होगा.